24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के बाद बढ़ी मुसीबत
24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की थी, उसके बाद जो जहां पर था, वहीं अटक गया। कुछ लोगों ने पैदल और रिक्शा से पलायन भी किया। 27 मार्च को लॉकडाउन के नियमों में संशोधन हुआ और कृषि कार्य को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल किया गया, लेकिन शायद संशोधन करने में सरकार की ओर से देरी हो गई। इसी बीच दिल्ली, पंजाब, मुंबई और नागपुर जैसे शहरों में मजदूरी कर रहे मजदूर घबरा गए और गांव के लिए पलायन कर गए।
मजदूरों के इस पलायन का सबसे बड़ा नुकसान पंजाब के उन किसानों को हो रहा है जिनकी खेती बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के भरोसे थी। इस वक्त गेहूं की फसलें पक गईं हैं और उन्हें काटने का वक्त निकला जा रहा है लेकिन मजदूरों की कमी के कारण फसल खेत में बर्बाद हो रही है। इसी बीच मौसम का भी डर है, क्योंकि यदि खुदा-ना-खास्ता मौसम का मिजाज बदला और आंधी-तूफान के साथ बारिश हो गई और ओले गिर गए तो किसानों पर आफत का पहाड़ टूट जाएगा।
लॉकडाउन से किन गतिविधियों को मुक्त रखा गया
27 मार्च के आदेश में लॉकडाउन से मुक्त होने वाली गतिविधियों में फसल की कटाई, कटाई की गई फसल की बाजार में आवाजाही, कस्टम हायरिंग केंद्र जो कि हार्वेस्टर और ट्रैक्टर जैसी मशीनरी किराए पर देते हैं और खाद, बीज और कीटनाशकों का निर्माण करते हैं शामिल हैं। अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव विजू कृष्णन के मुताबिक गेहूं और धान जैसी फसलों का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए अब कटनी की फसल को मंडियों में ले जाने को लेकर समस्या है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की स्थिति में कृषि गतिविधियों को छूट की बात सिर्फ कहने की है। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि अनाज और अन्य फसल सीधे खेत से उठाकर सरकार द्वारा मंडी में पहुंचाया जाए।
लॉकडाउन की घोषणा में रही समन्वय की कमी
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च में एसोसिएट प्रोफेसर शुदा नारायणन ने कहा कि केंद्र के आदेश में राज्यों के साथ समन्वय की कमी नजर आ रही है। उन्होंने बताया कि कई राज्यों ने इस स्थिति से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। उदाहरण के तौर पर तेलंगाना को ले सकते हैं। तेलंगाना ने किसानों को मंडी में जाने के लिए एक टोकन प्रणाली का इंतजाम किया है। इसके अलावा राज्य ने फसल की खरीद में पूर्ण विकेंद्रीकरण का वादा किया है, जिसके तहत फसल की खरीदी प्रत्येक गांव में संबंधित प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के माध्यम हो रही है। नारायणन ने कहा कि ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में पहले से ही विकेंद्रीकृत खरीद नियम लागू है। ऐसे में वहां किसानों को परेशानियों का कम सामना करना पड़ रहा है।
सब्जी और फूल के किसानों की स्थिति नाजुक