बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए आठ नए मंत्रियों को अपनी सरकार में शामिल किया है। खास बात यह है कि राज्य में जेडीयू-बीजेपी और लोजपा गठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल के विस्तार में अपने दोनों सहयोगी दलों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। रविवार को पटना के राजभवन में राज्यपाल लालजी टंडन ने जिन 8 नेताओं को मंत्री पद की शपथ दिलाई वो सभी नीतीश कुमार की अपनी ही पार्टी जेडीयू के नेता हैं। बिहार में अधिकतम 35 मंत्री बनाए जा सकते हैं और इस मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद अब सरकार में सिर्फ एक ही सीट खाली रह गई है। जाहिर है कि नीतीश कुमार ने अपने इरादे बिल्कुल साफ कर दिए हैं। ये नीतीश कुमार का जवाब देने का अपना स्टाइल है। वैसे भी जब राजनीति में नेता यह कहे कि वो नाराज नहीं है तो यह मान लेना चाहिए कि नाराजगी इस हद तक बढ़ गई है कि अब उसे शब्दों में जाहिर नहीं किया जा सकता। 30 मई को मोदी मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के लिए राष्ट्रपति भवन जाने से पहले नीतीश कुमार जब मीडिया से मुखाबित होते हुए यह बोलते नजर आए कि जेडीयू को मोदी सरकार में सांकेतिक भागीदारी मंजूर नहीं है, उसी समय यह साफ-साफ नजर आ रहा था कि नीतीश चुप नहीं बैठेंगे। नीतीश भले ही इससे इंकार करते रहे हों लेकिन जो खबरें छन कर आ रही थीं, उसके मुताबिक बीजेपी जेडीयू कोटे से सिर्फ एक नेता को ही मंत्री बनाना चाहती थी जबकि नीतीश कुमार बिहार में मिली बड़ी जीत के बाद इस तरह की सांकेतिक भागीदारी से कुछ ज्यादा चाहते थे। नीतीश जितना चाहते थे बीजेपी जब उतना देने को तैयार नहीं हुई तो नीतीश ने भी फैसला किया, सरकार से बाहर रहने का। पटना पहुंचे नीतीश ने ऐलान किया कि जेडीयू अब मोदी सरकार में शामिल नहीं होगी लेकिन एनडीए को बाहर से समर्थन देती रहेगी। ज्यादा वक्त नहीं बीता और फिर पटना से दूसरी बड़ी खबर आई कि नीतीश अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने जा रहे हैं लेकिन इस बार राज्य में बीजेपी को कुछ नहीं मिलने जा रहा है। बिहार की राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी नीतीश कुमार का यह अपना स्टाइल रहा है, राजनीतिक तौर पर जवाब देने का। नीतीश कुमार के इस फैसले पर सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए राज्य के उपमुख्यमंत्री और बिहार बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने बीजेपी से पद भरने की बात कही थी लेकिन बीजेपी ने भविष्य में ऐसा करने का फैसला किया है। हालांकि अब दोनों के बीच बात इतनी भी सहज नहीं रह गई है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि अब गेंद बीजेपी के पाले में है यानि अब जवाब देने की बारी बीजेपी की है। पटना से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक गलियारे में यह कयास लगाया जा रहा है कि क्या नीतीश की तर्ज पर बिहार में भी बीजेपी सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला कर सकती है ? क्या नीतीश सरकार में शामिल बीजेपी के सभी मंत्री इस्तीफा देकर सरकार को बाहर से ही समर्थन देने का ऐलान कर सकते हैं ?'
नीतीश नाराज तो हैं लेकिन भाजपा का साथ फिलहाल नहीं छोड़ेंगे
नीतीश कुमार बनाम मोदी-शाह की जोड़ी
नीतीश कुमार यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनका मुकाबला नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी से है, इसलिए फिलहाल तो वो अपने पत्ते संभल कर ही खेलना चाहते हैं। केन्द्र में पूर्ण बहुमत होने की वजह से बीजेपी को उनकी जरूरत नहीं है लेकिन बिहार में सरकार को बचाए रखने के लिए उन्हें बीजेपी की जरूरत है। नीतीश पिछले 5 सालों में शिवसेना के साथ हुए बर्ताव को भी देख कर समझ चुके हैं कि शिकायत करने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। इसलिए नीतीश अपना दांव खेल कर इंतजार कर रहे हैं सामने वाले के दांव का।
नीतीश सरकार पर मंडरा रहा है खतरा ?
इस सवाल का जवाब फिलहाल तो न ही है। नीतीश कुमार यह अच्छी तरह से जानते हैं कि बीजेपी भले ही सरकार से बाहर हो जाए लेकिन इतनी जल्दी समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिराने वाली नहीं है। पिछली बार भी बीजेपी ने खुद से बाहर होने की बजाय नीतीश कुमार को मजबूर कर दिया था कि वो उनके मंत्रियों को बर्खास्त कर बीजेपी से संबंध खत्म होने का ऐलान कर दें। नीतीश यह भी बखूबी समझते हैं कि लालू यादव की अनुपस्थिति में मिली करारी हार के बाद आरजेडी और तेजस्वी यादव के हौसले पस्त हैं। आज की तारीख में सत्तारुढ़ ही नहीं विरोधी दल के विधायक भी चुनावी मैदान में उतरने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार ने निश्चिंत होकर खुल कर अपना दांव खेला है।
फिर से गलती दोहरा रहे हैं नीतीश कुमार ?
नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी इससे पहले भी कई बार आमने-सामने आ चुके हैं। बिहार में आयोजित बीजेपी कार्यकारिणी के समय बीजेपी नेताओं को दिया गया डिनर कैंसिल करने के बाद दोनों के रिश्तों में और ज्यादा तल्खी आ गई थी। मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुनने के बाद ही नीतीश ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया। लालू यादव के समर्थन से अपनी सरकार बचाई। पहले अकेले लोकसभा का चुनाव लड़े, बुरी तरह से हारे। फिर लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े, जीते और सरकार बनाई। बाद में एक बार फिर से लालू यादव से अलग हुए और बीजेपी विधायकों के दम पर सरकार बचाई और चलाने लगे। ऐसे में कहा यह भी जा रहा है कि क्या नीतीश फिर से पुरानी गलती दोहराने जा रहे हैं ?
बिहार विधानसभा चुनाव पर है नीतीश की नजर
नीतीश की राजनीति का एक ही केन्द्र बिंदु रहा है कि बिहार में विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार जरूर बनायी जाए। इस बार भी लग रहा है कि नीतीश कुमार 2020 के विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर चुके हैं। बीजेपी भले ही बिहार समेत पूरे देश में विजय रथ के घोड़े पर सवार हो लेकिन नीतीश कुमार को लगता है कि बिहार में अभी भी हालात थोड़े अलग हैं। मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत हासिल करने की वजह से शायद नीतीश अब यह मान कर चल रहे हैं कि बिहार के मुस्लिम हिम्मत हार चुके आरजेडी की बजाय नीतीश के साथ रहना ज्यादा पसंद करेंगे। इन तमाम सियासी समीकरणों के बीच एक बात तो बिल्कुल साफ-साफ नजर आ रही है कि साथ रहने और दिखने के बावजूद नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच शह-मात का खेल शुरू हो चुका है और इंतजार करना होगा कि एकजुट होने के दावों के बीच अलग होने और दूसरे पर सीधा हमला बोलने की शुरूआत कौन करता है क्योंकि दोनों ही तरफ राजनीति के धुरंधर और माहिर खिलाड़ी हैं।